ऊई, व्व्व्व्वो वाला सेक्स नहीं, वो लिंग वाला सेक्स। जब से स्त्रीलिंग अवतरित हुआ है, पुल्लिंग उसकी चाहत में दीवाना रहा है, और वो काम किए हैं जो अन्य हालात में नहीं करता, चाहे उसका अंजाम भुगतना पड़ा हो। चाहे वो मार्क एन्टोनी की रोम के खिलाफ़ बग़ावत हो या शाहजहाँ की दीवानगी, इतिहास ऐसी मिसालों से भरा पड़ा है। कोई चीज़ सही हो या न हो, लेकिन स्त्रीलिंग ने कह दिया कि “सही है” तो सही है जी, वहीच्च सही है बाकी सब अनसही…. मतबल गलत है!!

अब हमारे एक दोस्त को ही लो। हमारे साथ कई बार शॉपिंग करने गए, कभी अपने लिए तो कभी हमारे लिए, तो कभी दोनों के लिए। लाइफस्टाईल हो या पैन्टालून, हम कितने ही अच्छी शर्ट आदि दिखा लिए होंगे, एक से बढ़कर एक क्वालिटी, लेकिन जवाब ई मिले रहे:

“ये कोई शर्ट है!! 1300 रूपए की है, इससे बढ़िया तो पड़ोस की दुकान में 500 की मिलती है, वही अच्छी अपने लिए!!”

“पागल थोड़े ही हुआ हूँ मैं अभी जो बेकार में ये 1100 की शर्ट खरीदूँगा। 400-500 की मिल जाती है अच्छी खासी।”

“ये शर्ट देख रहे हो जो मैंने पहन रखी है? 450 की ली थी दो साल पहले, अभी तक टका-टक है।”

अब हुआ यूँ कि ऊ नालायक दफ़्तर की एक मोहतरमा के साथ गए शॉपिंग करने(मोहतरमा को कुछ शॉपना था), पहुँचे किसी थर्ड क्लॉस दुकान मा। वहाँ मोहतरमा शर्ट देखते हुए एक निकालकर बोली कि बहुत अच्छी है, बढ़िया क्वालिटी है, तुम्हारे पर जंचेगी, तो ऊ नालायक उसको ले लिए, 1200 में!!! हमको जब मिले उसको पहन तो इतराए, हम बोले कि ई का बकवास सा कमीज पहने हो, हमार साथ इतनी बार शॉप किए हो लेकिन तुम ससुरा देहाती ही रहे। तो ऊ इतरा के बोला कि 1200 की है तो हम ध्यान से देखे, 400 से अधिक की लगती नहीं थी!! हम अपनी शर्ट की ओर इशारा कर बोले कि देख लो, 1100 में लिए थे और तुम्हार कमीज़ से बढ़िया है, तो ऊ अफसोस ज़ाहिर करते बोले कि का करें अब ले लिए तो ले लिए और फिर अपनी दुख भरी दास्तान सुनाई कि कईसे झांसे में आए गए!!

अईसे ही एक और चिरकुट होता था। ऊ बेचारा घास-फूस खाने वाला, मतलब टोटल मांस मच्छी से दूर रहने वाला, भगवान का भगत, दुखी आत्मा। ऊ की गर्लफिरेन्ड(अब थी कि नहीं ये हमें नाही पता, पर ऊ चिरकुट लट्टू था) को चिकन बहुत पसंद था, तो ऊ बेचारा उसका परसन्न करन की खातिर चिकन चाउमीन और चिकन फ्राईड राइस खा लिया करता और मजबूरी में दांत फाड़ कहता कि बहुत टैस्टी है। बेचारा अच्छी चीज़ को खा के भी दुखी मन से कहता कि अच्छी है।

तो भईया हम ई फरमा रिये हैं कि ई लिंग का मामला बहुत गड़बड़ घोटाला है भई। हम इनोसेन्ट मासूम पुल्लिंग खामखा के दुखी चक्कर में पड़ जाते हैं, लेकिन उल्टा तो नहीं होता दिखा कभी, वईसे हम कहावत जरूर पढ़े हैं; व्हाट गोज़ अराउन्ड कम्स अराउन्ड (what goes around comes around)।

चलो अब हम मलहम पट्टी का इंतज़ाम कर के रक्खें, ई दोनों ससुर का नाती इस पोस्टवा को पढ़ लिए तो जरूरत पड़ेगी। काहे? अरे हमारी पूजा-अर्चना(बहुत अच्छी कुड़ियाँ थीं जी) करने आएँगे तो हमें उनको मलहम पट्टी लगानी पड़ेगी ना!! 😉