परसों बताए रहे कि अपनी कॉमिक्स की लत की शुरुआत कैसे हुई।

पर हालात उस समय इतने भी बुरे नहीं हुए थे, शुरुआती दौर था, संक्रमण धीरे-२ बढ़ रहा था। अब मन में होता कि जेब खर्च बचाओ, होली-दीवाली पर जो पैसे मिलते उनको भी बचाओ और फिर सस्ते में पुरानी कॉमिक्स लाओ। डॉयमण्ड के चाचा चौधरी, बिल्लू, पिंकी और राजन इकबाल को जल्द ही विदा कह आगे बढ़े, तुलसी कॉमिक्स से उन दिनों तीन किरदार आते थे रेगुलर – जम्बू, तौसी और अंगारा।

जम्बू
मानव बुद्धि से युक्त रोबॉट – जम्बू

तुलसी कॉमिक्स उपन्यासकार वेद प्रकाश शर्मा का प्रकाशन थी शायद और यह जम्बू किरदार भी जिसमें दिमाग मनुष्य का लगा था और जो बाकी रोबॉट था और सुपर-हीरो था, सबकी वाट लगा सकता था। इसको कुछ समय तक पढ़ा लेकिन मज़ा न आया तो इसे भी पढ़ना छोड़ दिया। अन्य किरदार था तुलसी का – तौसी – जो कि पाताल लोक में नागलोक का राजा और इच्छाधारी सर्प था। इसकी कॉमिक्स में मज़ा आता था, बाद में इसके बेटे का किरदार भी आया लेकिन पता नहीं क्यों इसकी अधिक कॉमिक्स नहीं आई। तुलसी का तीसरा और अंतिम किरदार जो मैंने पढ़ा वह था अंगारा जिसे कि किसी वैज्ञानिक ने अलग-२ जानवरों के तत्वों से बनाया था, चमड़ी जिसकी गैंडे की थी जिस पर गोलियाँ बेअसर थीं, शक्ति हाथी की थी, फुर्ती चीते की थी और आँखें गिद्ध की थी। यानि कि जेनेटिक्स का कुछ फ्यूचरिस्टिक सा कमाल था, सोचने में बेशक वाहियात लगे लेकिन इसकी कॉमिक्स पढ़ने में खूब मज़ा आता था!! 🙂 इसी समय में परिचय हुआ मनोज कॉमिक्स के किरदार राम-रहीम की जोड़ी से जो कि मनोज कॉमिक्स में इकलौता किरदार था जो मुझे पसंद आया।

खैर, अब इनसे आगे बढ़ अपन आए राज कॉमिक्स पर। राज कॉमिक्स में मुख्य किरदार थे बांकेलाल, भोकाल, नागराज और सुपर कमांडो ध्रुव; बाकी के किरदार इन्होंने बाद में समय के साथ जोड़े। सीधे-२ समझ आता था कि नागराज की प्रेरणा स्पाईडरमैन से मिली और सुपर कमांडो ध्रुव का प्रेरणा स्रोत बैटमैन रहा।

राज कॉमिक्स के किरदार
राज कॉमिक्स के किरदार



एक अन्य किरदार जो याद आ रहा है जिसको राज कॉमिक्स में बाद में बंद कर दिया गया वह था अश्वराज, अश्वलोक का सम्राट इच्छाधारी अश्व। इसकी कॉमिक्स शुरु में अच्छी आती थी लेकिन स्टोरीलाइन बाद में कुछ ज़्यादा ही वाहियात हो गई जिसके कारण कदाचित्‌ इसकी कॉमिक्स आनी बंद हो गई। खैर तो अपन राज कॉमिक्स में बांकेलाल, भोकाल, नागराज और सुपर कमांडो ध्रुव की कॉमिक्स पढ़ने लगे। मोहल्ले के अन्य रसिया लड़कों से कॉमिक्स अदल-बदल के भी पढ़ते। उस रेहड़ी वाले से पता नहीं कितनी ही कॉमिक्स लाकर पढ़ी, जो कुछ ज़्यादा ही पसंद आती वह अपने पास रख लेता अपने कलेक्शन में और बाकी वापस चली जाती उसके पास। जल्द ही उसकी सारी पुरानी कॉमिक्स का कोटा समाप्त हो गया, यानि कि मैंने पढ़ डाला; तो अब एक ही मार्ग बचा दिखाई दिया, नई कॉमिक्स खरीदने का!! पापा जिस किताब वाले से अपनी पत्रिकाएँ लाते उसके पास नई कॉमिक्स के सैट तो आते लेकिन जल्दी नहीं आते थे!! फिर दूसरी गली में कुछ लड़कों से दोस्ती हुई, उनमें एक मेरी ही तरह कॉमिक्स का रसिया था तो उसने बताया कि यदि कॉमिक्स का नया सैट रिलीज़ होते ही चाहिए तो रेलवे स्टेशन के अंदर प्लैटफॉर्मों पर मौजूद बुक-स्टॉलों पर जाया करूं क्योंकि उनके पास माल जल्दी आता है।

अब मेरे घर से नई दिल्ली रेलवे स्टेशन कोई एक-डेढ़ किलोमीटर था सिर्फ़, परन्तु जाने में हिचक थी। एक दिन उस लड़के के साथ शाम को लगभग तीन-चार बजे मैं निकल लिया, पैदल ही हम लोग स्टेशन उस ओर से पहुँचे जहाँ डाक आदि और कारगों वगैरह जमा होता था आगे ट्रेनों में चढ़ने के लिए। जिस द्वार से यात्री बाहर आते थे उस द्वार से हम चुपके से अंदर खिसक गए क्योंकि उस समय वहाँ टिकट चैक करने वाला नहीं खड़ा था। अंदर पहुँच पहले ही प्लैटफॉर्म पर एक बड़ा सा बुक स्टॉल था जिसके पास कई सारी कॉमिक्स थीं, नया सैट भी उसके पास आ गया था जो कि अपने मोहल्ले के किताब वाले के पास नहीं आया था, तो उससे नई कॉमिक्स ले ली गई। उसके बाद तो मैं अकेला ही चला जाता और कॉमिक्स ले आता था। 🙂

यह सब तो ठीक परन्तु नई कॉमिक्स महंगी आती थीं, आठ रुपए की पतली वाली और सोलह रुपए की मोटी वाली आती थी, और जेबखर्च था कि महंगाई के साथ बढ़ा नहीं था, तो इसलिए जुगाड़ भी करने पड़ते थे। शाम के समय किसी दूसरी ओर के प्लैटफॉर्म पर जाता जहाँ अधिक भीड़ न होती और बुक स्टॉल पर तो दुकानदार के अतिरिक्त कोई होता ही नहीं। वहाँ कॉमिक्स के बंडल में कॉमिक्स छांटने के बहाने द्रुत गति से कॉमिक्स पूरी ही पढ़ डालता, उस समय तक तो माशा-अल्लाह पढ़ने की स्पीड इतनी हो गई थी कि जितनी देर में दुकानदार को शक होता उससे पहले ही अपन कॉमिक्स पढ़ डालते और फिर एकाध कॉमिक्स छांट के उलट-पलट के देखता और वापस आ जाता। जब खरीदता तब भी यही जुगाड़ लगाया जाता, एक कॉमिक्स खरीदी तो उसके साथ एक वहीं पढ़ भी ली जाती। अब दुकानदार इतना बेवकूफ़ तो था नहीं, ताड़ ही गया जल्दी ही, लेकिन चूंकि मैं कॉमिक्स खरीदता भी था तो उसको कोई आपत्ति नहीं थी यदि वहीं खड़े-२ एकाध पढ़ भी लेता हूँ तो(वो समझता था कि मैं सिर्फ़ थोड़ी सी पढ़ के देख रहा हूँ कि कॉमिक्स अच्छी है कि नहीं)!! 😉 😀 कॉमिक्स की कीमत कम करने का भी जुगाड़ निकाल लाया, दूसरे मोहल्ले में एक किताब वाले को सैट किया, उसको नई नकोर कॉमिक्स मैं पढ़ के कॉमिक्स के तीन चौथाई मूल्य पर बेच देता था, थोड़ा महंगा सौदा पड़ता लेकिन फिर भी सही था, कम से कम पूरी कीमत तो अपनी जेब से न जाती थी, तो फालतू कॉमिक्स जो खास पसंद न आती वो उसको बेच देता था।

स्कूल की छुट्टी होने पर नानी जी के घर जाता तो वहाँ भी कॉमिक्स चाहिए थी, तो वहाँ भी एक कॉमिक्स का जुगाड़ देखा, एक अंकल शाम को दुकान खोलते थे और उनके पास पुरानी कॉमिक्स किताबों आदि का खूब ढेर था तो उनसे किराए पर कॉमिक्स लाकर खूब पढ़ी!! जब उन्होंने दुकान बढ़ा दी तो एक अन्य दुकान ढूँढी कॉमिक्स के लिए ताकि जब भी नानी जी के घर जाऊँ तो कॉमिक्स की कमी न खले। 😉

जब मैं सातवीं या आठवीं कक्षा में था तब उस समय मेरे पास मोहल्ले में कॉमिक्स का सबसे बड़ा कलेक्शन था, तकरीबन डेढ़ हज़ार नई-पुरानी कॉमिक्स जिनको मैंने लगभग चार सालों में इकट्ठा किया था!! 🙂 लेकिन फिर कुछ कॉमिक्स चूहे कुतर गए, घर बदला तो कई सारी फट गई। नानी जी के घर के पास घर लिया तो इधर जिससे कॉमिक्स किराए पर लाता था उसको कई सारी कॉमिक्स बेच दी, मन बहुत दुखी हुआ था उस समय लेकिन रखने की जगह नहीं थी और फटवाने से अच्छा था कि उनको ऐसे व्यक्ति को दे दिया जाए जो कम से कम थोड़ी तो उनकी कद्र करेगा। कुछेक कॉमिक्स आज भी घर में कहीं किसी कोने में एक बोरे में दबी पड़ी होंगी क्योंकि सभी तो मैंने ठिकाने नहीं लगाई थीं। 🙂

मेरा कॉमिक्स पढ़ने का सिलसिला 2003-2004 में बंद हुआ। उस समय मैं जिससे कॉमिक्स किराए पर लाता था वह लड़का(लगभग मेरी ही उम्र का था) कुछ ज़्यादा ही स्याना बनता था अपने को(जबकि उसको मैंने कई बार शेन्डी लगाई थी, कैसे यह फिर कभी) और किराए के औने-पौने दाम अपनी मर्ज़ी से लगाने लगा था, इसी गड़बड़ पर आखिर एक दिन उससे मेरी बहस हो गई और मैंने उसके पास जाना ही बंद कर दिया। अभी हाल ही में एक अन्य स्टॉल पर एक अंकल जी से पत्रिकाएँ आदि लेता हूँ तो उन्होंने कॉमिक्स रखनी शुरु की तो पढ़ने का सिलसिला फिर चल निकला है, जब वे कॉमिक्स लाते हैं तो अपन भी पढ़ लेते हैं!! 🙂