अभी तीन-चार दिन पहले की बात है, मैं फ्रस्टियाया हुआ एक क्लाइंट के सॉफ़्टवेयर में आ गए बग को ठीक कर रहा था कि चैट पर जीतू भाई अवतरित हुए और एक लिंक थमा के बोले कि देखो इसे। मैंने सोचा कि कोई बढ़िया चीज़ होगी तो तुरंत देखा, और देख कर हंसी भी आई और तरस भी आया, क्योंकि मामला एक बार फिर पत्रकारों की एक चौथाई जानकारी और तीन चौथाई गप्प का था, पुनः अपनी समझदारी समाज के सर्वज्ञों ने दिखलाई थी, पुनः साबित किया कि उनको धेले की समझ नहीं और ना ही कहीं से उसको लेने की ज़रूरत वे महसूस करते हैं।

अब आप पूछें कि क्या हुआ, काहे मैं पत्रकारों को गलिया रहा हूँ तो मैं बताए देता हूँ क्या हुआ। हुआ यूँ कि जीतू भाई जो लिंक थमाए थे वह था जोश18 वालों की वेबसाइट पर छपी एक खबर का जिसका शीर्षक उन्होंने दिया था – “ज़रा बचके आपके बेडरूम में कोई है”।

खबर यूँ थी कि एक महिला नूतन शर्मा इंटरनेट पर कुछ खोज रही थीं कि उनको अपनी अश्लील तस्वीरें दिखाई दीं और तस्वीरों के बैकग्राउंड से वे उनके ही बेडरूम में ली गई जान पड़ती थीं। अब मोहतरमा ने तो ऐसा कोई काम किया नहीं दिखता था कि वे पेरिस हिल्टन (Paris Hilton) से मुकाबला कर रही हों, इसलिए उन्होंने पुलिस में शिकायत दर्ज़ की। पुलिस वालों ने भी अच्छे से तफ़्तीश की और पूरे कमरे को छान मारा, दीवारों अलमारियों फर्नीचर आदि सबको छान मारा लेकिन उनको कोई स्पाई कैमरा नहीं मिला। और अपने स्तर से ऊँचे स्तर की इस मुसीबत को उन्होंने साइबर अपराध शाखा को सौंप दिया। इसके बाद पुणे के एशियन स्कूल ऑफ़ साइबर लॉ (Asian School of Cyber Law) के अधिकारियों ने नूतन के घर का दौरा किया, छह महीने तक तफ़्तीश चली और आखिरकार निहायत ही काबिल-ए-तारीफ़ दानिशमंदी का परिचय देते हुए मामले को सुलझा दिया गया, घर के भेदी को पकड़ लिया गया। घर का भेदी कोई और नहीं नूतन का वेबकैम (webcam) था। लेकिन अधिकारी असमंजस में थे कि कैमरा तो बिना किसी के चलाए चल नहीं सकता, वह तो नूतन का ज़रखरीद गुलाम था, तो कैसे यह कयामत हुई कि उसने नूतन की अपने बेडरूम में कपड़े बदलते हुए आदि तस्वीर ले ली?

तफ़्तीश का जो नतीजा सामने आया उसके मुताबिक वेबकैमरा गद्दार था, किसी ने उसको हैक कर लिया। अपने रोज के काम निपटा नूतन ने कंप्यूटर को बंद कर दिया और इसके बावजूद उनके कैमरे ने उनकी तस्वीरें ले ली क्योंकि कंप्यूटर में ट्रोजन नाम का एक सॉफ़्टवेयर आ गया था जिसकी मदद से कोई दूर बैठा व्यक्ति उनके कैमरे को नियंत्रित कर रहा था, वह भी तब जब नूतन का कंप्यूटर बंद था।

यह तो हुई खबर, यह खबर किसी भी गैर तकनीकी व्यक्ति को टेन्शन में डाल सकती है, जो कि आईबीएन-7 (IBN-7) के इस पत्रकार का उद्देश्य लगता है। आखिर चूहे को चूहा बताएँगे तो खबर थोड़े ही बिकेगी!! खबर बेचने के लिए चूहे को डायनोसॉर बताना आवश्यक है। क्यों? कैसे? अभी बताते हैं।

इस मामले में वैसे पत्रकार की कोई खास गलती नहीं है लेकिन खबर को बिना अपनी जाँच के या जानकारी के ज़रूरत से अधिक फुला के और मिर्च-मसाला लगा के बताने की गलती अवश्य की गई है। ट्रोजन (Trojan) कोई एक सॉफ़्टवेयर नहीं होता वरन्‌ कंप्यूटर वॉयरसों की एक जाति होती है जिनको ट्रोजन हॉर्स कहते हैं। इनका नाम ट्रॉय (Troy) के ट्रोजन हॉर्स (Trojan Horse) पर पड़ा क्योंकि ये वॉयरस भी ठीक कहानी के घोड़े की भांति जो देखने में होते हैं वह असल में नहीं होते और पर्दे के पीछे चोरी-छिपे बहुत कुछ कर जाते हैं।

दूसरी बात मुझे यह समझ नहीं आती कि यदि कंप्यूटर बंद कर दिया गया है तो बिना बिजली के वेबकैमरा कैसे चालू रह सकता है? क्या कोई जादू है? क्या पत्रकार, पुलिस और नूतन कंप्यूटर को बंद करने का अर्थ जानते हैं? स्क्रीन को टीवी की तरह बंद कर देने को कंप्यूटर बंद करना नहीं कहते, वह तो सिर्फ़ स्क्रीन बंद हुई है, कंप्यूटर तो उसके साथ जुड़ा वह बड़ा सा डिब्बा होता है जो कि टेबल के नीचे छुपा के रखा होता है। स्क्रीन और कंप्यूटर में जो फर्क नहीं कर सकता उसे तो खैर कुछ कह ही नहीं सकते। खामखा का हल्ला मचा रहे हैं कि कंप्यूटर बंद होने के बाद भी वेबकैमरा चालू रहा और तस्वीरें लेता रहा!!

अब पुलिसवालों की भी सुध ली जाए। लोकल पुलिस का क्या कहें, साइबर क्राइम वालों को ही लो। एक स्पेशलाइज़्ड शाखा है लेकिन उनमें इतनी समझ नहीं कि तस्वीरें देख के यह पता लगाएँ कि तस्वीरें किस दिशा से ली गई और फिर उस दिशा में तस्वीर लेने वाले कैमरे को खोजें!! आखिर स्पाई कैमरा एक ही जगह पर होगा ना, अपने आप ही तो इधर-उधर उड़ता नहीं फिरता होगा?? या उसको दूर से संचालित करने वाला व्यक्ति उसको इधर-उधर उड़ा भी रहा था?? 🙄 लेकिन नहीं, लगता है कि समझदार लोग आजकल पुलिस में भरती ही नहीं होते, या अपना टाइमपास करने के लिए पुलिस वाले ऐसे छोटे-मोटे मामलों को इतना लंबा खींचते हैं कि उनका अधिक से अधिक टाइमपास हो सके। जो काम पाँच मिनट में ताड़ जाने वाला था उसके लिए पुलिस वालों और साइबर अपराध शाखा के अधिकारियों ने छह महीने बर्बाद कर दिए!!

पत्रकारों को क्या कहें, ऐसे पत्रकार तो अब लानत भेजने के भी योग्य नहीं रहे, लेकिन ऐसे पुलिसवाले साइबर क्राइम (Cyber Crime) जैसी स्पेशलाइज़्ड शाखाओं में हैं तो इस देश का एक नागरिक और समाज का एक हिस्सा होने के नाते मुझे बहुत चिंता होती है। देश की आंतरिक सुरक्षा और अमन चैन बनाए रखने के लिए ज़िम्मेदार पुलिस जब इतनी समझ वाली है तो कोई आश्चर्य नहीं होता कि आंडू-पांडू ऐरे-गैरे आतंकवादी बम धमाके करके टहलते हुए चले जाते हैं और पुलिस चूहे के बिल सूंघती रह जाती है। आतंकवादी टहलते हुए आते हैं, बम फोड़ते हैं और ऐसे टहलते हुए निकल जाते हैं जैसे कंपनी बाग में सैर करने निकले हों। जब ये पाँच मिनट के काम में छह महीने लगा सकते हैं तो बड़े मामलों में तो पता नहीं कितने जन्म लगाएँगे!!! और उस पर फिर ये पुलिस वाले और ये पत्रकार सीना चौड़ा करके डंका पीटते हैं कि कैसे छह महीने की कड़ी तफ़्तीश के बाद इन्होंने अति जटिल गुत्थी को सुलझाया कि चोरी छुपे तस्वीरें किसने लीं!! तौबा!! 🙄 संजय भाई नोट करें कि पुलिस ऐसी भी होती है। 😉

एक बार बस में जा रहा था तो दो लोग आपस में बात कर रहे थे। उनमें से एक दूसरे से बोला था – “यह देश राम भरोसे ही चल रहा है”। आज मुझे वाकई लगता है कि वह व्यक्ति कितना ज्ञानी था, वाकई आश्चर्य होता है कि ऐसे समझदारों के रहते देश चल कैसे रहा है। 🙄

 
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