कहावतें कई मायनों में ज़िन्दगी के किसी न किसी मोड़ पर सच निकल आती हैं। जब भी मैं काम में इतना मशगूल हो जाता हूँ कि खाने-पीने की भी सुध नहीं रहती तो माता जी अक्सर कहती हैं – भूखे भजन न होए गोपाला। और अभी कुछ देर पहले यह बात सच साबित हुई। हुआ यूँ कि ऑफिस के एक प्रोजेक्ट में कुछ मामला अटक गया था, तीन-चार घंटे से मामला आगे ही न बढ़ के दे रहा था, अपना रात्रि भोजन होल्ड पर रख मैं मामला निपटाने में लगा हुआ था कि वह निपटे और सप्ताहांत के लिए जान छूटे लेकिन गाड़ी आगे न बढ़ के दे रही थी! आखिरकार भोजन कर लेने की सोची, भूख काफ़ी लग रही थी। भोजन करके वापस लौटा तो दो मिनट में पंगा सामने ही नज़र आ गया (कमबख्त नज़रों के सामने था लेकिन नज़र न आ रहा था पहले) और अगले दो मिनट में निपट भी गया, चला के देखा तो सरपट दौड़ लिया, सो उसको फाइनल कर अपडेट आगे खिसकाया और चैन आ गया!!

वाकई सच है – भूखे भजन न होए गोपाला!! 😀