….. और अक्ल? कदाचित्‌ इतनी कि उसके होने पर ही संदेह हो!! क्या कभी किसी अन्य व्यक्ति के बारे में ऐसी अनुभूति हुई है? हो सकता है आपको न हुई हो पर मुझे कई बार हुई है। दिल्ली मनुष्यों का एक महासागर है, यहाँ हर आकार, प्रकार और विकार के लोग मिलते हैं

उँगली की हड्डी उतर गई थी वह अब काफ़ी ठीक हो गई है, तकरीबन सत्तर प्रतिशत उँगली अब मुड़ जाती है, बाकी भी जल्द ही कुछ दिनों में गर्म पानी की सिकाई और दवा युक्त तेल की मसाज तथा उँगली की एक्सरसाइज़ से ठीक हो जाएगी ऐसा डॉक्टर साहब का कहना है। तो बस आज इसी खुशी में नानी जी के घर के बाहर एक महीने से खड़ी अपनी मोटरसाइकल ली और पेट्रोल डलवाने और एक चक्कर लगा आने की गरज से अपन निकले।

पेट्रोल डलवाने के बाद सोचा कि रिलायंस फ्रेश (Reliance Fresh) में भी हो आया जाए, जूस इत्यादि खत्म था तो उसका स्टॉक ले लेंगे वहाँ से। जब रिलायंस फ्रेश से बाहर आया तो देखा कि एक साहब अपनी गाड़ी मेरी मोटरसाइकल के पीछे खड़ी करके रिलायंस फ्रेश की ओर बढ़े चले आ रहे थे, उन्होंने गाड़ी ऐसे खड़ी की थी कि मोटरसाइकल और गाड़ी में इंच भर का ही फासला था और चूंकि मोटरसाइकल के आगे दीवार थी तो उसको ऐसी स्थिति में निकालना न हो पाता। तो मैंने उन साहब से कहा कि वे कृपया अपनी गाड़ी को ज़रा सा पीछे कर लें ताकि मैं मोटरसाइकल निकाल सकूँ। आस पास पूरी जगह खाली थी, वे चाहते तो तमीज़ से गाड़ी सीधी खड़ी कर सकते थे कि किसी को भी कोई दिक्कत न हो, लेकिन जैसा कि अधिकतर मूढ़ लोग करते हैं वे टेढ़ी ही सड़क पर खड़ी किए थे!

मेरे कहने पर उन्होंने मोटरसाइकल को देखा और मुझसे बोले कि निकल जाएगी, मैंने कहा नहीं निकलेगी आपकी गाड़ी पीछे खड़ी है और आगे दीवार है, इंच भर की जगह है आगे पीछे तो ऐसे कैसे निकलेगी। इस पर बड़बड़ाते हुए वे गाड़ी की ओर बढ़े, मैंने कहा कि आसपास सब जगह खाली पड़ी है आप सीधी ही खड़ी कर लो, आपका काम भी आसान और किसी और को भी समस्या नहीं होगी। तो इस पर जवाब आया – “भाषण मत दे बे”। अब ऐसा लहज़ा सुन के मुझे क्रोध आया, मैंने कहा गलती करी है तो चौड़े होने की आवश्यकता नहीं है, इस पर उन्होंने गाली बकी, उत्तर मैंने भी वैसे ही दिया, माँ बहन बाप दादा सब को पूछ लिया, उन्होंने मुझे “हरामी” कहा तो मैंने भी सुझाव दिया कि घर जाकर अपनी माँ से पूछें कि कौन से नंबर वाले आशिक की पैदाइश हैं! और उसके बाद मैं गाली गलौच का वार्तालाप आगे बढ़ाने के मूड में नहीं था इसलिए अपने रास्ते हो लिया, वे भी रिलायंस फ्रेश में घुस गए।

घर आकर मैं यह सोच रहा था कि ऐसा क्या हो गया जो उन साहब को अपनी जहालत का ढोल पीटना पड़ा और फिर उत्तर में मुझे भी भाषा की कंगाली बयान करनी पड़ी?!! उन्होंने गाड़ी को गलत तरीके से खड़ा किया था तो मैंने बस उसे ही तो ठीक करने के लिए कहा था ताकि मैं अपनी मोटरसाइकल निकाल के घर जा सकूँ!! तो इसमें भाव खाने की या गाली गलौच करने की क्या आवश्यकता आन पड़ी थी? या कुछ लोगों को यह साबित करे बिना, कि उनके पास भले ही किलो भर का दिमाग है लेकिन अक्ल आधा ग्राम भी नहीं, खाना हज़म नहीं होता?!! मैंने भी खामखा ऐसे व्यक्ति के साथ अपने पाँच मिनट बर्बाद करे, खामखा गाली गलौच करी!!

अब अनूप जी पुनः न कह दें कि क्या बात है आजकल सभी बद्‌तमीज़ों से पाला पड़ रहा है!! वैसे ऐसे लोगों से पाला पड़ता रहता है, जैसा कि मैंने कहा – दिल्ली मनुष्यों का एक महासागर है, यहाँ हर आकार, प्रकार और विकार के लोग मिलते हैं!!

ऐसा ही एक व्यक्ति पहले मिला था। मैं अपने मित्र मदन के घर से रात को वापस आ रहा था (उन दिनों मदन घर के पास ही रहता था), उस इलाके में गड्ढे होने के कारण बरसात का पानी जमा था जगह-२, मैं आराम से मोटरसाइकल निकाल रहा था कि पानी न उड़े, न मुझ पर और न ही बाजू से जाने वाले किसी और पर। तभी बाजू से एक व्यक्ति मारूति ओमनी (Maruti Omni) में तेज़ी से निकला और ढेर सारा पानी मुझ पर और अन्य दो मोटरसाइकल सवारों पर उड़ाता निकला। मैंने उसके बाजू में जाकर उसको कहा – “जनाब जगह-२ पानी भरा हुआ है थोड़ा आराम से निकालिए, देखिए आपने ढेर सारा गंदा पानी मुझ पर उछाल दिया”। तो इस पर उस व्यक्ति ने बगल में बैठी अपनी बीवी की ओर देखा और मुझसे माफ़ी माँगते हुए कहा कि गलती हो गई, तो मैंने “कोई बात नहीं आगे से ध्यान रखिएगा” कहा और मुस्कुरा के अगले मोड़ से मुड़ने के लिए लेन बदल ली। जैसे ही मैं मुड़ रहा था वैसे ही वह पुनः तेज़ी से मेरे बाजू से जानबूझ के पानी उड़ाते हुए निकला और साथ में माँ बहन की गाली भी बकता गया!!

अब ऐसे व्यक्ति को अक्ल से महरूम और जहालत के खजाने से भरा पूरा नहीं कहा जाएगा तो और क्या कहा जा सकता है।

बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर,
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।

समझ नहीं आता कि क्यों लोग ऐसे विक्षिप्तों की भांति व्यवहार करते हैं, इतने जाहिल और बद्‌तमीज़ क्यों होते हैं कि खामखा अकारण ही दूसरों से बद्‌तमीज़ी से पेश आते हैं। या ऐसे प्रोएक्टिवली (proactively) अशिष्ट व्यवहार करने से कोई सैडिस्ट (sadist) टाइप सुखांत अनुभूति होती है?

ऐसे लोगों की लापता बुद्धि पर अचरज होता है, कभी-२ मन करता है कि या तो इनका सिर फोड़ देना चाहिए या इनको नग्न कर जंगल में भटकने के लिए छोड़ देना चाहिए क्योंकि निश्चित रूप से ऐसे लोग सभ्य समाज में रहने योग्य नहीं हैं। पर फिर मन में आता है कि बेचारे जंगली जीव जंतुओं का क्या अपराध जो वे ऐसे जीवों को झेलें!! ऐसे पतित लोगों को तो लानत भेजना भी लानत का अपमान प्रतीत होता है।