देश का राष्ट्रीय पशु, बाघ, लगभग विलुप्त होने को है, सिर्फ़ 1411 बाघ बचे हैं देश में। क्या यह आपको जाना पहचाना लग रहा है? यदि हाँ तो वह इसलिए कि मोबाइल सेवा प्रदाता एयरसेल (aircell) ने मुहीम चलाई हुई है सबको इस विषय में अवगत कराने की। भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान कैप्टेन कूल धोनी, जो कि एयरसेल के ब्रैंड एम्बैसेडर हैं, भी टीवी के विज्ञापन में चिंता जतलाते दिख जाते हैं। एक नेक मुहीम है, बाघ की वाकई रक्षा होनी चाहिए, सिर्फ़ इसलिए नहीं कि वह राष्ट्रीय पशु है परन्तु इसलिए कि वह प्रकृति की धरोहरों में से एक है और हम मनुष्यों के कारण विलुप्त होने की कगार पर है!! परन्तु जिस तरह यह अभियान चलाया जा रहा है उससे बाघ बच जाएँगे क्या? एक विज्ञापन में फिल्म अभिनेता कबीर बेदी कहते हैं कि आईये ब्लॉग लिखें चिंता जतलाएँ। मैं ब्लॉगों और सोशल मीडिया की शक्ति को नहीं नकार रहा हूँ लेकिन मैं यह सोच रहा हूँ कि क्या ब्लॉग लिखने से बाघों का कत्ल-ए-आम थम जाएगा? जो शिकारी स्मगलर आदि बाघों का शिकार कर रहे हैं वे ब्लॉग पढ़ते हैं क्या? या उनको कोई फर्क पड़ता है कि ब्लॉगों आदि पर क्या लिखा है?


इसलिए मुझे इस विषय में संशय है क्योंकि या तो यह अभियान बिना अधिक सोच के चलाया जा रहा है या फिर जनहित की मुहीम की आड़ में प्रमोशन का एक तरीका मात्र है। जनहित अभियान के ज़रिए अपना लाभ करना कोई बुरा कार्य नहीं, प्राइवेट कंपनी है और मुनाफ़ा चाहिए तभी आगे भी ऐसे अभियान जारी रह सकेंगे। लेकिन अभियान की कोई सेन्स तो बननी चाहिए!! बेतुके अभियान से क्या जनहित होगा? क्या यह जस्ट फॉर द सेक ऑफ़ इट किया जा रहा है?

अब बात करें अर्थ ऑवर (Earth Hour) की। अर्थ ऑवर के पीछे मामला यह है कि प्रत्येक वर्ष एक दिन एक घंटा शाम के समय लोगों से अपने घरों आदि की बिजली बंद करने को कहा जाता है, विश्व भर के शहरों में स्थानीय समय अनुसार। काहे ऐसा किया जाता है? अब इस शगूफ़े के पीछे फिलॉसोफ़ी यह है कि एक घंटा यदि हर व्यक्ति अपने-२ घर की बिजली बंद कर दे तो इससे बिजली की बचत होगी, कार्बन फुटप्रिंट कम होगा। अपन कदाचित्‌ मूढ़ हैं क्योंकि अपने को यह चीज़ कम से कम भारत जैसे देश में बेतुकी और हास्यप्रद लगती है। परसों अर्थ ऑवर वाले दिन रवि जी ने इस पर एक पहलू के मद्देनज़र अपने विचार रखे, इधर कल दीप (अंग्रेज़ी लिंक) ने भी अपने ब्लॉग पर बतलाया कि क्यों इस तरह के अभियान भारत में बेतुके हैं। दरअसल हम भेड़ों की तरह आँख मूँद किसी भी चीज़ को मानने के लती (जी हाँ लत ही तो लग गई है) हो गए हैं। परसों अपनी ट्विट्टर स्ट्रीम में देखा किसी ने कुछ ऐसा कहा:

भारत में एक घंटा बिजली बंद कर बिजली बचाने को कहना ऐसा है जैसे किसी कुपोषण के शिकार को यह कहना कि वह एक समय का भोजन न करे क्योंकि अमेरिकी खा-खा कर मोटापे का शिकार हो रहे हैं

अब यह किसने कहा यह मुझे याद नहीं, खोजने की कोशिश करी लेकिन यह ट्वीट नहीं मिली। बहरहाल, ट्वीट चोट करती हुई है और अर्थ ऑवर की भांति सेन्सलेस नहीं है।

परसों शाम मैं नज़दीक ही मौजूद मामा जी के घर गया तो वहाँ ऐसे ही ज़िक्र आया और मामी जी ने कहा कि साढ़े आठ बज रहे हैं बिजली बंद कर देनी है। मुझे पता था लेकिन फिर भी मैंने पूछा कि क्यों करनी है तो वे बोलीं कि अर्थ ऑवर है। मैंने पूछा कि उससे क्या होगा तो मामा जी ने कहा कि बिजली बचेगी और कार्बन फुटप्रिंट कम होगा। इस पर मैंने फिर उत्तर दिया कि हमारे या पूरे इलाके के या पूरी दिल्ली के बिजली बंद कर देने से पॉवर स्टेशन बिजली बनानी बंद नहीं करेंगे, तो कार्बन फुटप्रिंट में ऐसी कोई कमी नहीं आएगी। यहाँ (भारत में) तो वैसे ही जितनी बिजली पैदा होती है वह पूरी नहीं पड़ती, बहुत सी जगहों पर कई-२ घंटों तक रोज़ाना अर्थ ऑवर मनाया जाता है।

दूसरी बात यह कि यदि बिजली प्रयोग नहीं की जाती तो वह भी नुकसान है क्योंकि बिजली को संजो के नहीं रखा जा सकता, जितनी बनती है उतनी प्रयोग होनी आवश्यक है अन्यथा बर्बाद जाएगी, और कार्बन फुटप्रिंट तो फिर भी उतना ही बढ़ेगा। यह पानी या अनाज आदि नहीं है कि यदि सरप्लस है तो उसको स्टोर करके रख लिया बाद में काम आ जाएगा!! और ऐसा भी नहीं है कि यदि बिजली कम प्रयोग हो रही है तो एकदम से पॉवर स्टेशन बिजली बनानी कम कर देंगे। वे ऐसे रियल टाइम एडजस्टमेंट पर नहीं चलते, एक निश्चित सीमा होती है और उतनी ही बिजली प्रति मिनट घंटे दर घंटे उत्पन्न की जाती है। और ऐसा भी नहीं है कि यदि एक इलाके के लोग एक घंटे के लिए बिजली बंद कर देंगे तो वह बिजली दूसरे इलाके में पहुँच जाएगी जहाँ लोड शेडिंग की जा रही है। इसलिए यह सब चोंचले अमेरिका और योरोप आदि में उचित लगते हैं जहाँ चौबीसों घंटे बिना रुकावट बिजली आती है और नाराज़ होकर जाती नहीं है!! भारत जैसी जगहों पर यह आडम्बर एक वाहियात मज़ाक ही है और कुछ नहीं।

और यदि बिजली बचानी ही है और अपना बिल भी कम करना है तो उसके लिए बिजली व्यर्थ न की जाए। साल में एक दिन एक घंटा बिजली बंद कर बचाने की सोचना वैसे ही है जैसे नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली का हज को जाना!! बिजली बचाओ, अपने प्रतिदिन के जीवन में यह आचरण लाओ कि जहाँ व्यर्थ बिजली का प्रयोग हो रहा है उसको रोको। यदि किसी कमरे में बैठे हो और रोशनी की आवश्यकता नहीं है तो ट्यूब आदि बंद कर दो, किसी कमरे में यदि कोई नहीं है तो वहाँ ट्यूब पंखे आदि बंद कर दो, कंप्यूटर पर काम नहीं है तो उसको बंद कर दो और यदि नहीं कर सकते तो कम से कम स्क्रीन को बंद कर दो। इस तरह की आदत को नित्य जीवन में ढालने से बहुत फर्क पड़ता है, बिजली बचेगी और महीने का बिजली का बिल आने पर भी फर्क नज़र आएगा।

 
 
चीते की फोटो साभार law_keven और अर्थ ऑवर की फोटो साभार aussiegall, क्रिएटिव कॉमन्स लाइसेन्स (Creative Commons License) के अंतर्गत